दाल दो सौ रूपये किलो हो रही हैं , किसान भूखों मर रहा हैं।
हाल ही में विक्रम पहलवान फीरोजाबाद के परिवार से मिलने उत्तर प्रदेश के उनके गाँव अधमपुर फीरोजाबाद गया। वहां जाकर महसूस किया की किसान की हालत पतली हैं। पिछली बार फसल चौपट हो गई थी , जो कुछ बचा उसे कोल्ड स्टोर में तो रखवा दिया पर निकालने के रूपये नहीं हैं। पढ़ने या कुछ सीख कर बन सकने वाले नव -युवक शीशे की फैक्ट्रियों में दिहाड़ी लगा रहे हैं , कुछ तो हाईवे पर दो बर्तन लेकर बैठ गए हैं , तो कोई पेड़ के नीचे ही एक कुर्सी लगा बाल काट कर पेट भरने को मजबूर हैं। हालात इतने नाजुक हैं की जिन छोटे छोटे बच्चों को स्कूल जाकर देश का भविष्य सुधारना था वो भी पढाई छोड़ कर चूड़ियों पर कढ़ाई की मजदूरी कर रहे हैं। ये हमारे हिन्दुस्तान को क्या हो गया हैं ? सड़कों पर सैकड़ों कारें हैं पर खेतों में बीज , खाद- पानी नहीं। खेती की जमीनो को एक्वायर करके उनपे चौड़ी सड़कें , रेलवे लाइन और बड़ी बड़ी हाउसिंग सोसाइटीज बन रही हैं लेकिन उसी किसान के घर पर सफेदी तक नहीं । अनाज विदेशों से इम्पोर्ट हो रहा हैं लेकिन किसान को देने के लिए रुपया नहीं। दाल दो सौ रूपये किलो हो रही हैं , किसान भूखों मर रहा हैं। आज नए नए कपड़ों , मोबाइल , टेलीविज़न , कार जैसी चीज़ों की मार्किट में भरमार हैं लेकिन पेट भरने का सामान दुर्लभ होता जा रहा हैं। ये किसानो के साथ हो रहे बुरे बर्ताव का परिणाम हैं। जब वो कुछ उगाता हैं तो उसकी खरीद नहीं लेकिन वही फसल शहरों में उपभोक्ताओं तक बहुत मंहगी पहुँचती हैं। बीच में गहरा झोल हैं , बड़े दलाल हैं , इन्होने किसानो से कौड़ियों के मोल माल खरीदना हैं , नहीं तो ये इम्पोर्ट कर लेंगे। कुछ तो बहुत बड़ी गड़बड़ हैं , बड़ा षड्यंत्र हैं , कुछ बहुत बड़ा देशद्रोह का काम चल रहा हैं।
हालांकि इन सब कठिनाइयों के बीच विक्रम पहलवान कुश्ती खेल को फुल टाइम अपनाये हुए हैं। ये देख कर कुछ संतुष्टि हुई। लेकिन अधिकांशत युवा वर्ग खेलों से दूर हो रहा हैं , उनकी जवानी और उम्मीदें एक हज़ार सेंटीग्रेड से ऊपर जल रही कांच की भट्टी के सामने खड़े होते ही वाष्प बन कर उड़ जा रही हैं। खौलते कांच को चूड़ी या कुछ और बनाते समय उसकी आग और तपन पेट की आग के सामने फीकी पड़ गई हैं।
हालांकि इन सब कठिनाइयों के बीच विक्रम पहलवान कुश्ती खेल को फुल टाइम अपनाये हुए हैं। ये देख कर कुछ संतुष्टि हुई। लेकिन अधिकांशत युवा वर्ग खेलों से दूर हो रहा हैं , उनकी जवानी और उम्मीदें एक हज़ार सेंटीग्रेड से ऊपर जल रही कांच की भट्टी के सामने खड़े होते ही वाष्प बन कर उड़ जा रही हैं। खौलते कांच को चूड़ी या कुछ और बनाते समय उसकी आग और तपन पेट की आग के सामने फीकी पड़ गई हैं।
good riport
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